डाँ. आदेश कमार पंकज के दोहे
पाई पाई जोड़ के बना खूब धनवान ।
संस्कार नहीं जानता कैसा तू नादान ।।
करता लूट खसोट है वा रे वा इन्सान ।
लालच में है घूमता बिगड़ गई सन्तान ।।
क्यों तू लालच कर रहा करता फिरता पाप ।
सोने सा अनमोल तन बना रहा अभिशाप ।।
पंकज नित दिन दीजिए संतति को संस्कार ।
ज्ञान विवेक जिनमें नहिं वह सब हैं बेकार ।।
खूब तिजोरी भर रहे कुछ नहिं आया हाथ ।
ढाई गज का कफन ही जायेगा बस साथ ।।
पंकज मेरी मानिए करें सदा सत कर्म ।
नश्वर यह संसार है सब ग्रंथों का मर्म ।।
पंकज निर्बल को कभी नहीं सतायें यार ।
उसकी छोटी हाय से मिट जाये परिवार ।।
डाँ.आदेश कुमार पंकज,
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद
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