दीप वंदन

दीप वंदन कर सकें हम,भाव ऐसा ईश देना।
नम्रता से प्रेम-पद में झुक सके वो शीश देना।।
षड्विकारों के तमस से पंथ जीवन का घिरा है।
ज्योति का आशीष उज्ज्वल कर कृपा जगदीश देना ।।
जल उठे सद्भावना का दीप हर्षित हो हृदय में।
विश्व को वाणी विमल वात्सल्य से वागीश देना।।
भूल होती है सभी से चूक के पुतले सभी हम।
पतित भी पावन बने वो दंड न्यायाधीश देना।।
अवनि आलोकित सदा आलोक हो आत्मीयता का।
एक शुभकर दीप पावन बाल हे ज्योतीश देना।।
——- R.R.Sahu
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद