दिसंबर महीने पर कविता

आ गये दिसंबर के
ठिठुराते दिन।
कोहरे की चादर
धूप भाये पल झिन ।
आ गये दिसंबर के ठिठुराते दिन ।
लुका छुपी करता
सूरज दादा आसमां पे
बेमौसम पानी
बरसे रिमझिम ।
आ गये दिसंबर के ठिठुराते दिन ।
काँप रहे दादा जी
जला रहे अलाव
दादी बुला रही अरे
सोनू मोनू जल्द आव
दाँत किटकिटाते
पानी पीने से किनकिन।
आ गये दिसंबर के ठिठुराते दिन ।
नहाने बुलाने से
रो रही है मुनिया
कहता गोला भी
न नहाऊँ री मइयाँ
कूद रहा ताल दे
तक धिन धिन धिन।
आ गये दिसंबर के ठिठुराते दिन ।
चाय काफी भाये
हलुवा सुहाते
गरम गरम पकोड़े
समोसे जी ललचाये
स्वेटर शाॅल बिन
कटते नहीं दिन ।
आ गये दिसंबर के ठिठुराते दिन ।
केवरा यदु “मीरा “
राजिम (छ॰ग)
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