मंजिल पर कविता

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राही तू आगे बढ़ता चल,
देखो मंजिल दूर नहीं है।
मेहनत कर आगे बढ़ता चल,
देखो वो तेरे पास खड़ी है।।

सच्चाई के ताकत के बल पर,
अपने सपनों को पूरा कर।
दिखा दे अपने जज्बे को तू,
मातृभुमि की रक्षा कर।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।

मत सह जुल्म और अत्याचारों को तुम,
सिंहनाद करो, संघर्ष करो तुम।
देखो, दुनिया तेरे साथ खड़ी है,
कानून तेरे लिए खड़ी है।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।

चौखट पर बैठी वो मां,
तेरे लिए ख्वाब सजा रही है।
कर उनके सपनों को पूरा,
जो तेरे लिए ही जी रही है।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।

मुश्किल हजार आएगी राह में,
खुद को तू मजबूत कर।
लोगों के तानों से अपने,
आत्मविश्वास को परिपूर्ण कर।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल दूर नहीं है।

जब तक न सफल हो,
सुख चैन का त्याग करो तुम।
मेहनत के बल पर ही,
अपने लक्ष्य को भेदो तुम।।
राही तू आगे बढ़ता चल, देखो मंजिल पास खड़ी है।

अपने सफल होने पर,
न कभी तू अभिमान कर।
बेसहारों का सहारा,
पिछड़ों की तू आवाज बन।।
कर्त्तव्य पथ और सदमार्ग पर, तू सदा गतिमान रह,
राही तू आगे बढ़ता चल, मंजिल तेरे साथ खड़ी है।

सृष्टि मिश्रा (सुपौल, बिहार)


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One response to “मंजिल पर कविता – सृष्टि मिश्रा”

  1. Rajeev Kumar Avatar
    Rajeev Kumar

    Good poem

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