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दिल अपना तुझको दिया है

नायक –
दिल अपना मैने तुझको उपहार दिया है
क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
नायिका –
हां हमने सनम तुम पर ऐतबार किया है
लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
नायक –
यादों में रात सारी गुज़ारते हैं हम
ख़्वाबों में भी बस तुमको पुकारते हैं हम
चँदा में अक्स तेरा निहारते हैं हम
है
तेरे नाम जबसे दिल ये दिलदार किया है
क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
दिल अपना…..
क्यों तूने….
नायिका –
तू बीज मोहब्बत का जिस दिल में बो गया
सुनकर तेरी ये बातें दिल तेरा हो गया
चैनों सुकूं न जाने कब कैसे खो गया
इस रोग का बस तुमने उपचार किया है
लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
हां हमने सनम…..
लो आज…..
नायक –
‘चाहत’ ये जबसे जागी तुम ज़िन्दगी हुईं
करने लगा इबादत तुम बन्दगी हुईं
न बुझती है कभी जो वो तिश्नगी हुईं
हर बार हामी भर के इन्कार किया है
क्यों तूने अभी तक नहीं स्वीकार किया है
दिल अपना…..
क्यों तूने……
नायिका –
वो भूल थी इक मेरी ये माननें लगी
सच्चाई तेरे दिल की अब जानने लगी
आशिक़ से तुमको दिलबर मैं मानने लगी
इंकार नहीं यारा इक़रार किया है
लो आज कह दिया है तुमसे प्यार किया है
हां हमने सनम…..
लो आज…..


नेहा चाचरा बहल ‘चाहत’
झाँसी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद


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