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दिवाली पर कविता हिन्दी में

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दिवाली पर कविता हिन्दी में नीचे दिए जा रहे हैं

dipawali rangoli
dipawali rangoli

दीपावली पर दोहे

*दीपक* एक  जलाइये, तन  माटी  का  मान।
मन की करिये वर्तिका, ज्योति जलाएँ ज्ञान।।

*पावन* मन त्यौहार हो, तम को  करना भेद।
श्रम करिये  कारज सधे, बहे तनों से  स्वेद।।

*वतन*  हमारा  है सखे, मनुज रहे सम भ्रात।
सबका  सुख त्यौहार हो, सद्भावी  हो बात।।

*लीप* पोत अपने भवन, करना शुभ परिवेश।
गली,गाँव से प्रांत फिर,स्वच्छ बने सब देश।।

शुभ सबको  *दीपावली*, फैले ज्ञान प्रकाश।
शुद्ध रहे  मन भावना, करिये  देश विकास।।

✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा, दौसा,राजस्थान

अपनी दीवाली आई है

कार्तिक मास की सर्द ऋतु में
देखो  दीपावली आई है ।
जगमगा उठी अपनी वसुंधरा 
चहुँओर खुशीहाली छाई है ।
सुख समृद्धि भरकर दीपोत्सव
अपनी थाली में लाई है ।
अंधकार भगा प्रकाश को लेकर
अपनी दीवाली आई है ।।


साफ-सुथरा हर गली मुहल्ला 
कितना प्यारा लगता है   ।
सजा-धजा अपना स्वदेश 
जो जग से न्यारा लगता है ।
अधर्म मिटाकर धर्म के रथ पर
चढ़कर दीपावली आई है ।
अंधकार भगा प्रकाश को लेकर
अपनी दीवाली आई है।।


हल्के पीले रंग गुलाबी
दीपों के मनमोहक रंग ।
बच्चे फोड़ते खूब पटाखे
हँसी खुशी हर ओर उमंग ।
भाईचारा का संदेश देती हुई
फिर से दीपोत्सव आई है ।
अंधकार भगा प्रकाश को लेकर
अपनी दीवाली आई है।।


धानी चादर ओढे उर्वी 
गुलाबी ठंडक बरसाती है ।
दीपों से सज रही है धरणी
सबके मन को हरसाती है ।
सब धर्मो के गूढ तत्व को
अपने प्रकाश में समाई है ।
अंधकार भगा प्रकाश को लेकर
अपनी दीवाली आई है।।


घी के दीपक जगमग जलते
श्रीराम कृष्ण के स्वागत में ।
श्रेष्ठ सभ्यता मिलीं है हमको
गीता रामायण के समागत में।
सामाजिक समरसता को लेकर
पावन दीपोत्सव आई है ।
अंधकार भगा प्रकाश को लेकर।
अपनी दीवाली आई है।।


     बाँके बिहारी बरबीगहीया

दीपावली का आया त्यौहार

दीपावली का ,आया त्यौहार,
झूमे नाचे ,सब नर नार।
माँ लक्ष्मी की ,अर्चना से,
भर जाते ,धन के भंडार।

खील बतासे ,बर्फी लड्डु,
भरते मन में ,उमंग मिठास।
कोना कोना ,निखरे ऐसे,
जैसे धवल ,चांदनी रात।

महल झोंपड़े चमक गए सब,
दीपक सजे लंबी कतार।
धरती पर ही लग गए है,
मानों सुन्दर ,स्वर्ग बाजार।

सफल तभी ,होगा त्यौहार,
ग़रीब का भी ,भर जाए थाल।
हर इक हाथ बढ़ जाए मदद का,
मिट जाए उनका अंधकार।

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रजनी श्री बेदी
जयपुर
राजस्थान

 घर-घर दीप जले

अवध पुरी आए सिय रामा।
 ढोल बजे नाचे सब ग्रामा।। 
 घर-घर दीप जले हर द्वारे। 
 वापस आए सबके प्यारे।।

 राम राज चहुँ दिशि है व्यापे। 
 लोक लाज संयत सब ताके ।।
 राजधर्म सिय वन प्रस्थाना ।
 सत्य ज्ञान किंतु नहीं माना।।

 है अंतस सदा बसी सीता ।
 एकांत रहे उर बिन मीता।।
 सुख त्याग सर्व कर्म निभावें।
 प्रजा सुखी निज दुख बिसरावें।।

नरकासुर मारे बनवारी ।
राम तो है विष्णु अवतारी ।।
खील बताशे अरू आरती।
 सबके मन खुशियाँ भर आती।।

 सज रही देख दीप मालिका।
 खुश हैं बालक सभी बालिका ।।
 उर आनंदित चहुँ दिशि छाये। 
 हरे तिमिर जगमग छवि पाये ।।

लिपे -पुते सुंदर घर द्वारे।
 हैं प्रकाशित रहे उजियारे।।
 नए-नए सुंदर परिधाना।
 सब को मन से तुम अपनाना।। 

अर्चना पाठक ‘निरंतर’
अम्बिकापुर ,सरगुजा 
छत्तीसगढ़

जगमग दीप जले घर-घर में

जगमग दीप जले घर-घर में,
                लेकर खुशियाँ आयी है।
रंग-बिरंगी    परिधानों   में,
                सबके मन को भायी है।।
                
धनतेरस  की  पावन   बेला,
                खुशहाली घर आते हैं।
स्वस्थ होत हैं तन मन जिससे,
                धन्वन्तरी  बताते   हैं।।
लेकर के सौगातें देखो,                
                 शुभ दीवाली आयी है।
जगमग दीप जले घर-घर में,
                 सबके मन को भायी है।।

नरकासुर  राक्षस  को  मारे,
                 इस दिन श्री बनवारी थे।
लौटे रावण मार अवध को,
                 राम विष्णु अवतारी थे।।
स्वागत दीप जलाते दिल से,
                 खुशियाँ मन में छायी है।
जगमग दीप जले घर-घर में,
                 सबके मन को भायी है।

माता लक्ष्मी और गजानन,
                वांछित  वर  दे  जाते हैं।
खील बताशे भोग आरती,
                पूजन शुभ फल पाते हैं।।
घर आँगन में खुशियाँ देखो,
                 सबके मन में छायी है।।
जगमग दीप जले घर-घर में,
                 सबके मन को भायी है।
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रचनाकार:-
बोधन राम निषादराज “विनायक”
सहसपुर लोहारा,जिला-कबीरधाम(छ.ग.)

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