एक मुस्कान

मनुजता शूचिता शुभता,खुशियों की पहचान होती है।
जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
इसी बिटिया से ही खुशियाँ,सतत उत्थान होती है।
जहाँ बिटिया के मुखड़े,पर धवल मुस्कान होती है।

सदन में हर्ष था उस दिन,सुता जिस दिन पधारी थी।
दिया जिसने पिता का नाम,यह बिटिया दुलारी थी।
महा लक्ष्मी यही बेटी,यही वात्सल्य की दानी।
सदा झंडा गड़ाती है,सुता जिस दिन जहाँ ठानी।
मिटाने हर कलुषता को,सुता को ज्ञान होती है।
जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।

यही बंदूक थामी है,जहाजे भी उड़ाती है।
यही दो कुल सँवारी है,यही सबको पढ़ाती है।
सुता सौंधिल मृदुल माटी, सुता परित्राण की घाटी।
सुता से ही सदा सजती,सुखद परिवार परिपाटी।
मगर क्योंकर पिता के घर,सुता मेहमान होती है।
जहाँ बिटिया के मुखड़े पर,धवल मुस्कान होती है।
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डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर” ✍️✍️✍️

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