फाल्गुन की बहार -शची श्रीवास्तव
फागुन की बयार
होली का मनभावन त्योहार मन में उमंग और उल्लास जगाता है तो कुछ कसक और मधुर स्मृतियां भी लाता है।
आई होली
होली के त्योहार पर अनाथ और गरीब बच्चे भी रंग पिचकारी और गुझिया का आनंद उठा सकें, हम सबको उनके लिए अवश्य सोचना ही चाहिए।
फाल्गुन की बहार -शची श्रीवास्तव

होली के रंग भरे मौसम में मेरे द्वारा रचित दो कविताएं आप सबसे साझा कर रही हूं
1- फागुन की बहार
आज फ़िर आ गयी होली,
बिसरी यादें जगा गयी होली।
रंग कुछ लायी तेरी यादों के
कुछ गुलाल तेरी ख्वाहिश के,
कुछ अबीर तेरी चाहत के
गाल पर फ़िर लगा गयी होली।
तेरी इक आस संग ले आयी
फाग की रुत न जाने क्यूँ आयी,
कितने अरमानों की किरचों को
दिल में फ़िर यूँ जला गयी होली।
काश कोई फागुनी बयार यूँ आती
संग ये साथ तुझको ले आती,
मेरे जीवन की सूनी राहों को
रंगीं कुछ बना गयी होती होली॥
2- आई होली
चलो मनायें होली की रुत
कुछ ऐसे इस साल ,
सबसे हो दिल का अपनापन
रहे न कोई मलाल।
कुछ अपने जो हुए पराये,
उन्हें मना लें आज,
रहे न कोई द्वेष अहम्
सबको अपना ले आज।
चलो भरें कुछ रंग सजीले
उस गरीब बचपन में,
जिसकी आँखें तरस रहीं
रंगों बिन पिचकरी बिन।
कुछ पकवान नये कपड़ों पर
हक उनका भी तो है,
अपने हाथों को इस सुख से
मत दूर करो इस साल।
चलो मनायें होली की रुत
कुछ ऐसे इस साल ,
सबसे हो दिल का अपनापन
रहे न कोई मलाल।।
शची श्रीवास्तव
Bahut sundar
Holi mubarak 👍❤️👍