गणतंत्र दिवस पर ओजपूर्ण कवितायें
सत्यमेव जयते का नारा भ्रष्टमेव जयते होगा
राजनीति का दामन थामे अपराधों की चोली है|
चोली चुपके से दामन के कान में कुछ तो बोली है|
अपराधी फल फूल रहे हैं नोटों की फुलवारी में|
नेता खेला खेल रहे हैं वोटों की तैयारी में|
अपराधों का उत्पादन है राजनीति के खेतों में|
फसल इसी की उगा रहे नेता चमचों व चहेतों में|
नाच रही है राजनीति अपराधियों के प्रांगण में|
नौकरशाही नाच रही है राजनीति के आँगन में|
प्रत्याशी चयनित होता है जाति धर्म की गिनती पर|
हार-जीत निश्चित होती है भाषणबाजी विनती पर|
मुर्दा भी जिन्दा होकर मतदान जहाँ कर जाता है|
लोकतन्त्र का जिन्दा सिस्टम जीते जी मर जाता है|
जहाँ तिरंगे के दिल पर तलवार चलाई जाती है|
संविधान की आत्मा खुल्लेआम जलाई जाती है|
वोटों का सौदा होता है सत्ता की दुकानों में|
खुली डकैती होती है अब कोर्ट कचहरी थानों में|
निर्दोषों को न्याय अदालत पुनर्जन्म में देती है|
दोषी को तत्काल जमानत दुष्कर्म में देती है|
शोषित जब भी अपने अधिकारों से वंचित होता है|
लोकतंत्र का पावन चेहरा तभी कलंकित होता है|
भ्रष्टाचारियों का विकास जब दिन प्रतिदिन ऐसे होगा|
सत्यमेव जयते का नारा भ्रष्टमेव जयते होगा|
देशभक्ति की प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है
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देशभक्ति की प्रथम निशानी सरहद की रखवाली है|
हर गाली से बढ़कर शायद देश द्रोह की गाली है|
जिनको फूटी आँख तिरंगा बिल्कुल नहीं सुहाता है|
निश्चित ही आतंकवाद से उनका गहरा नाता है|
राष्ट्रवाद के कथित पुजारी क्षेत्रवाद के रोगी हैं|
देश नहीं प्रदेश ही उनके लिए सदा उपयोगी हैं|
महापुरुष की मूर्ति तोड़ने वाले भी मुगलों जैसे|
गोरी, बाबर, नादिर, गजनी, अब्दाली पगलों जैसे|
मीरजाफरों, जयचन्दों, का जब जब पहरा होता है|
घर हो चाहे देश हो अपनों से ही खतरा होता है|
पूत कपूत भले होंगे पर माता नहीं कुमाता है|
ऐसा केवल एक उदाहरण मेरी भारत माता है|
माँ की आँखों के तारे ही माँ को आँख दिखाते हैं|
आँखों में फिर धूल झोंककर आँखों से कतराते हैं|
भारत माँ के मस्तक पर जब पत्थर फेंके जाते हैं|
छेद हैं करते उस थाली में जिस थाली में खाते हैं|
कुछ बोलें या ना बोलें बस इतना तो हम बोलेंगे|
देशद्रोहियों की छाती पर बंदेमातरम् बोलेंगे|
भारत माता की जय कहने से जो भी कतराते हैं|
भारत तेरे टुकड़े होंगे कहकर के गुर्राते हैं|
ऐसे गद्दारों को चिन्हित करके उनकी नस तोड़ो|
किसी धर्म के चेहरे को आतंकवाद से मत जोड़ो|
प्रतिशोधों की चिंगारी को आग उगलते देखा है
प्रतिशोधों की चिंगारी को आग उगलते देखा है|
काले धब्बे वाला उजला धुँआ सुलगते देखा है|
नफरत का सैलाब भरा है पागल दिल की दरिया में|
भेदभाव का रंग भरा है अब भी हरा केशरिया में|
गौरक्षक के संरक्षण में गाय को काटा जाता है|
जाति-धर्म के चश्में से इन्सान को बाँटा जाता है|
धरती से अम्बर तक जिनकी ख्याति बताई जाती है|
उन्हीं पवन-सुत की भारत में जाति बताई जाती है|
जातिवाद जहरीला देखा सामाजिक संरक्षण में|
भारत बंद कराते देखा जातिगत आरक्षण में|
हमने जिन्दा इंसानों को जिन्दा ही सड़ते देखा|
मुर्दों को हमने कब्रों-शमशानों में लड़ते देखा|
देखा हमने धर्मग्रंथ के आयत और ऋचाओं को|
ना हो दंगा, नहीं करेंगे आपस में चर्चाओं को|
देख लिया धर्मान्धी ठेकेदारों वाली पगदण्डी|
देख लिया है हमने मुल्ला,पण्डित पापी पाखण्डी|
धर्मान्धी लिबास पहन जब मानव नंगा होता है|
अमन-शान्ति की महफिल में फिर खुलकर दंगा होता है|
आजादी गुलाम हुई
फसल बाढ़ में चौपट भी है नहर खेत भी सूखे हैं|
सबकी भूख मिटाने वाले अन्न-देवता भूखे हैं|
सबका महल बनाने वाले मजदूरों की छतें नहीं|
पेड़ के नीचे सोते परिवारों के घर के पते नहीं|
उजियारे के बिन अँधियारा कैसा दृश्य बनाएगा|
फुटपाथों पर भूखा बचपन कैसा भविष्य बनाएगा|
माँ के गहने बेंच के शिक्षा सब पूरी करते देखा|
पी. एच. डी. बेरोजगार को मजदूरी करते देखा|
पाकीज़ा रिश्तों को हमने तार-तार होते देखा|
अपनी अस्मत को लुटते एक बेटी को रोते देखा|
दरिन्दगी, वहशी, हैवानी, लालच बुरी निगाहों पर|
घर में जलती बहू, बहन-बेटी जलती चौराहों पर|
नही समझ में आता है अब सुबह हुई या शाम हुई|
गुलामी आजाद हुई या आजादी गुलाम हुई|
—-“अली इलियास”—-
इलाहाबाद,प्रयागराज(उत्तर प्रदेश)
(9936842178)