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गजल-राजकिशोर धिरही

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गजल-राजकिशोर धिरही

कमाई पाप की हो वो खजाना छोड़ दो अब से
मिलाकर दूध में पानी कमाना छोड़ दो अब से

भरोसा जिंदगी का ख़ौफ़ में आकर रहें कब तक
मुहब्बत है तुम्हीं से बस सताना छोड़ दो अब से

गली में चाँद निकले देखने की कुछ इजाजत हो
नियम जो जान लेती हो बनाना छोड़ दो अब से

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शहर में हम कमाने को गए थे हाथ खाली है
पड़ोसी हैं तुम्हारे ही भगाना छोड़ दो अब से

समय को देखकर धोखा करे गद्दार होता है
परख कर बेवफा से दिल लगाना छोड़ दो अब से

जहर मुँह से उगलना जन्म से आदत बनाया हो
बहाना नव बनाकर के बताना छोड़ दो अब से

मरेंगे साथ ऎसा हो नहीं सकता जमाने में
रखूँ सर गोद में दामन हटाना छोड़ दो अब से

राजकिशोर धिरही

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