गर निराशा आशा पर भारी पड़ने लगे – अनिल कुमार गुप्ता अंजुम

कविता संग्रह
कविता संग्रह



गर निराशा ,आशा पर भारी पड़ने लगे

जब उचित –अनुचित का भाव् मन से ओझल होने लगे।

जब आस्तिक – नास्तिक का बोध न हो

समझो मानव , निराशा के अंधे कुँए में गोते लगा रहा है।



जब प्रभु भक्ति से मन खिन्न होने लगे

जब उसकी महिमा पर संदेह होने लगे।

जब उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न उठने लगें

समझो मानव सभ्यता अपने पतन की और अग्रसर है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *