मनीभाई के छत्तीसगढ़ी कविता

गरीब के दीवाली

dipawali rangoli
dipawali rangoli

का छिरछिरी? का मिरचा? का गोंदली फटाखा?
का सूरसूरी अऊ थारी?नी जाने एटम के भाखा?
नी फोरे फटाखा मोर संगी,  नइ होवे जी डरहा।
दूसर के खुशी ल देखके,  खुश होवथे गरीबहा।
खाय तेल म बरे दीया, धाज आये लाली लाली।
रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
का के नवा ओनहा अउ ,का खरीदिही साजू ?
जइसे तइसे जिनगी काटे, मांग के आजू बाजू।
छुहीगेरू के लीपईपोतई  ,आमाडारा बांधत हे।
लखमी पूजा के खातिर , जवरी भात रांधत हे।
कोन जानी कब भेजत हे मां ,घर म खुशहाली।
रात भर जल रे दीया, तय ही गरीब के दीवाली।
रिंगीचिंगी रंगोली देखके ,लइकामन मोहावत हे।
कोयला, ईंटागुड़ा , हरदी पीसके फेर रंगावत हे।
अपन कलाकारी म,सब्बोझन ला मोहे डारत हे।
मन के खुशी ह बड़े होथे, एहि बात बगरावत हे।
कृपा कर एसो अन्नपूरना,  सोनहा कर दे बाली।
रात भर जल रे दीया,  तय ही गरीब के दीवाली।

मनीभाई ‘नवरत्न’, छत्तीसगढ़

मोर संग चलव रे

(मोर संग चलव रे…. आदरणीय श्री लक्ष्मण मस्तुरिहा के गीत से प्रेरित व उसी के तर्ज़ पर)

मोर संग पढ़व रे
मोर संग गढ़व ….
ओ दीदी बहनी नोनी मन
अउ लइका के महतारी मन
मोर संग पढ़व रे
मोर संग गढ़व ।

महिला मन के हक ल छिनै
ए पुरुष समाज।
भोग विलास के चीज जानै
लुट के जेकर लाज।
अपन लड़ई अपन हाथ म
अपन रक्षा करव रे।
मोर संग लड़व ….

बंध के नारी, चारदीवारी
कइसे विकास पाय।
घुट घुट के मर जाही तभोले
पुरूष नी करे हाय।
भीख बरोबर मांगव झन
आपन हक़ छीनव रे।
मोर संग लड़व…..

मनीभाई नवरत्न

किसान के दरद

कनहू नी समझे
किसान के दरद ला।
पहिली के पहिली बूता
हर बाचेच हे।
समे नइये  गंवई घूमे के ,
लोकजन ला भूला गयहे
रबी फसल के चक्कर म ।
एसो लागा ल भी
अड़बड़ छुट करिस शासन ह।
तहुंच ले नई चुकता होईस
सेठ के तीन परसेंटी बियाज।
जोशेजोश म बोर ल खदवाईस हे।
जम्मो डोली टिकरा ल उपजाईस हे।
बिजली आफिस के
कोरी चक्कर लगाईस हे।
टेंशन म सबो चुंदी झर्राईस हे।
कनहू काल म
“लईन गोल” हो जाथे।
गेरी के मछरी बरोबर
हो जाथे किसान।
न खेत-खार पोसै सकय न छाड़त।
हदरके हटर-हटर
काटत राथे मंझनिया
रुक तरी म।
लेकम
कनहू नी समझे किसान के दरद ला
किसनहा मन ही जानही……
✒️मनीभाई ‘नवरत्न’ भौंरादादर,बसना, छत्तीसगढ़।

मोर संग पढ़व रे 

मोर संग पढ़व रे 
मोर संग लिखव रे
ओ दीदी बहनी नोनी मन
अउ लइका के महतारी मन
मोर संग पढ़व रे 
मोर संग लिखव रे

महिला मन के हक ल छिनै
ए पुरुष समाज। 
भोग विलास के चीज जानै
लुट के जेकर लाज। 
अपन लड़ई अपन हाथ म
अपन रक्षा करव रे। 
मोर संग लड़व …. 

बंध के नारी, चारदीवारी
कइसे विकास पाय।
घुट घुट के मर जाही तभोले
पुरूष नी करे हाय। 
भीख बरोबर मांगव झन
आपन हक़ छीनव रे। 
मोर संग लड़व….. 

मनीभाई नवरत्न

महतारी के मया

महतारी के मया ल,आखर म कैसे कहौ?
दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
लाने हस मोला दुनिया म
मोर अंग अंग म तोर अधिकार हे।
भगवान बरोबर तय होथस ,
तोर पूजा बिना चारोंधाम बेकार हे।
तोर आशीष मोर मुड़ म तो,जग ला नई डरौ।
दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
भुख लागे ल दाई मोर,
अपन हाथ ले कौंरा खवाथें।
हिचकी आ जाय ले,
लकर-धकर  पानी  पियाथें।
अतक मया हे कि मुहु ले न बोले सकौ ।
दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
बाबूजी मोर आजादी के,
सब्बो दिन खिलाफत रइथें।
महतारी बूता ले छुट्टी दे के
झटकुन घर आ जाबे कहिथें।
मोर मन के सबो बात,दाई ल कहे सकौ।
दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।
बोली भाखा सिखाय हे,
दय हे जिनगी के ग्यान।
सुत उठके आशीष दय,
मोर बेटा बने जग म महान।
करज उतारे बिना तोर, हरू नई होय सकौ।
दाई तोर मया बने राहे ,पइंया तोर परौ।

छत्तीसगढ़, मनीभाई ‘नवरत्न’, 

हनुमान जंयती

  “धरव -पकड़व -कुदावव”
अउ सब्बो झन तोआवव।
चढ़गय बेंदरा रूख म त,
ढेला घलव बरसावव।
अइसने करम करत हावे,
आज के मनखे।
मनावत हे “हनुमान जयंती”
सीधवा अस बनके।
सबों जीव के रखबो जी
जूरमिल के मान
बेंदरा घलव ल तो
जानव हनुमान
बड़ सुघ्घर नता हावे,
बेंदरा अऊ इनसान के।
बड़ भारी सेना रहिन ,
श्रीराम भगवान के ।
हनुमान-राम के नता ल,
सब्बोझन जानथे।
बेंदरा तभ्भे मनखे ल,
अपन राम मानथे
फेर बेंदरा ल हनुमान
मनखे कहाँ मानथे
वाह – वाह रे मनखे
बेंदरा के चीरफाड़,
परयोग बर करथे
अउ कोनो दूसर नही
हमरे संही मनखे।
मनावत हे “हनुमान जयंती”
सीधवा अस बनके।

मनीभाई नवरत्न