गरीबों पर कविता

दौड़ने वाले पहिए थम गए,
चलने वाले कदम रुक गए।
लाए हैं उन अमीरों ने इसको,
गरीबों की आँखें नम कर गए।

ये कैसी गुलामी में फंद गए,
बड़े-बड़े योद्धा भी इसे डर गए।
थका बुझा सहमा सा मजदूर,
जिसका जीवन पूरा बिखर गए।

घायल पंछी की तरह पंख टूट गए,
जीवन जीना दूभर हो गए ।
हालात से उनको डर नहीं,
दो वक्त रोटी के लिए तरस गए।

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