गुलाब नहीं है पुष्प आज

गुलाब

कवि: डॉ हिमांशु शेखर

ये प्रेम प्रतीक, इश्क आज,
प्रेमी का है ये अश्क आज,
उपयोगी ना है मुश्क आज,
करना ना कोई रश्क आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

कोमलता के इतने भक्षक,
दिखते सबमें केवल तक्षक,
है खार बना इसका रक्षक,
कांटों से ही ये चुस्त आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

है स्वेद रक्त ये माली का,
तितली से पाए लाली का,
भौरों की हर बदहाली का,
इसमें केवल है रक्त आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

गुलकंद खाद्य विचित्र बने,
इसकी सुगंध से इत्र बने,
ऊर्जा इसकी चरित्र बने,
मनमोहक है ये सत्व आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

प्रेमी दिल की है धड़कन,
ये प्रेम पत्र सा आकर्षण,
प्रेमी के चेहरे का दर्शन,
प्रेमी गली की गश्त आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

है पुष्पगुच्छ में मूल यही,
कर देता ये हर भूल सही,
गलती सारी बन धूल बही,
गलतफहमियां नष्ट आज,
गुलाब नहीं है पुष्प आज।

कवि: डॉ हिमांशु शेखर
बंगला 05, नेकलेस एरिया,
आर्मामेंट कालोनी, पाषाण,
पुणे – 411021, भारत।
मोबाइल: 919422004678
ई-मेल : [email protected]

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *