गुरु महिमा – बासुदेव अग्रवाल नमन
गुरु महिमा
अज्ञान तिमिर का ज्ञान-भानु,
वह मन में फैलाता ज्ञानालोक।
करता उभय लोक सफल गुरु,
हरता सब जीवन का शोक।।
जीव कूप-मण्डूक सा बन कर,
पा नश्वर जीवन हो रहा भ्रमित।
तब ब्रह्म-रूप गुरु जीवन में आकर,
सच्चा पथ दिखला करे चकित।।
माया के गूढ़ावरण में लिप्त,
जो जीव चकित है वसुधा देख।
करा के परिचित जीवन तत्वों से,
गुरु लिखता उसकी भाग्य-रेख।।
लोह-मन का गुरु पारस पत्थर,
घिस घिस भाव करे संचार।
जर्जर तन करता कंचनमय,
ज्ञान-ज्योति का करके प्रसार।।
नश्वर जीवन के प्राणों में जो,
निर्मित करता भावों का आगार।
अमर बनाता क्षणभंगुर तन,
पीयूष धारा का कर संचार।।
चुका नहीं हम सकते तेरे ऋण,
जीवन का भी दे उपहार।
सूखे मानस-पादप के माली को,
मेरे हो अनंत नमस्कार।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया