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दीपक सा जलता गुरू

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दीपक सा जलता गुरू

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दीपक सा जलता गुरू,सबके हित जग जान।
गुरू से हीं पाते सभी, सरस विद्या गुण ज्ञान।।

जग में गुरु सिरमौर है,तम गम हरे गुमान।
भर आलोक जन-मन सदा ,देते है मुस्कान।।

निर्झर सा निर्मल गुरू ,मन का होता साफ।
शुचिता का छोड़े सदा ,सभी के उपर छाप।।

महिमाअनूठा गुरु की,अग-जग सदा महान।
चरणों में गुरू के झुकें,आ करके भगवान।।

आदर सेवा में रखों ,प्रेम श्रध्दा विश्वास।
सिखो ज्ञान गुरुसे सदा,ले मन उज्वल आश।।

प्रगति करो आगे बढ़ो ,गढ़ो अपना इतिहास।
चलो सदा रूको नहीं ,मत हो कभी निराश।।

गुरू ज्ञान की श्रोत महा ,मोक्ष मंत्र गुरु ज्ञान।
जो इससे वंचित रहा ,जग में वहीं नादान।।

जो ज्ञान गुरु गंगा में ,करता सदा नहान।
गुणी चतुर नागर वहीं ,कहते सभी सुजान।।

गुरु बिना नहीं हो सका ,कोई भव से पार।
गुरू चरण लवलीन हो, इसपर करो विचार।।

गुरु जगतकी शानशुचि,जस शम्भु कृष्णराम।
नमन करें पद की सदा ,नित कवि बाबूराम।।

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बाबूराम सिंह कवि,गोपालगंज,बिहार
मोबाइल नम्बर-9572105032
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