हाइकु मंजूषा-पद्म मुख पंडा स्वार्थी
हाइकु मंजूषा
विरासत में
जो हासिल है हमें
उच्च संस्कार
यह गरिमा
रखें संभालकर
बनें उदार!
आज जरूरी
प्रेम पुनर्स्थापना
उमड़े प्यार!
हंसी ख़ुशी से
जीने का तो सबको
है अधिकार!
बिक रहे हैं
देश के धरोहर
खबरदार!
मैं हूं देहाती
छल छद्म रचना
है नहीं आती
देहात चलें
लोगों से करें हम
मन की बात
होने वाले हैं
पंचायत चुनाव
न हो तनाव
प्रतिनिधित्व
रुपयों की कमाई
साफ़ व्यक्तित्व
किस तरह
पटरी पर आए
बाज़ार दर
जनता चाहे
सुखद अहसास
पूर्ण विकास
बन्धु भावना
पुनः हो स्थापित तो
देश हित में
हे प्रभाकर
तिमिर विनाशक
रहो प्रखर
गगन पर
छाए हुए बादल
छू दिवाकर
नभ के तारे
बिखेरते सुगन्ध
कितने प्यारे
पूर्णिमा रात
कितनी मो द म यी
निशा की बात
प्रेमी युगल
आनन्द सराबोर
हसीन पल
आ गई सर्दी
बदला है मौसम
खुश कर दी
प्रिय वचन
सुनकर प्रसन्न
सबका मन
पद्म मुख पंडा स्वार्थी
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद