हौसलों की उड़ान

हौसलों की उड़ान

कबूतर पर बाल कविता
उडान पक्षी


हौसलों की उड़ान मत कर कमजोर,
अभी पूरा आसमान बाकी है,
परिंदों को दो खुला आसमान,
सपनों को परिंदों सी उड़ान दो।


यूं जमीन पर बैठकर,
क्यूं आसमान देखता है,
पंखों को खोल जमाना,
सिर्फ उड़ान देखता है।
तेरा हर ख्वाब सच हो जाए,
रख जज्बा कुछ करने का ऐसा,
कर भरोसा खुद पर इतना,
कि तेरी सपनों की उड़ान नजर आए।


सपनों की उड़ान लेकर चली,
एक नन्ही सी जान,
हौसले बुलंद थे उसके,
छूना था उसे आसमान।
सपनों की उड़ान आसान नहीं होती,
इसके पीछे त्याग छुपा होता है,
इसके ये सपनों की उड़ान हैं जनाब,
यहां ऐसे ही उड़ना पड़ता है।

हौसले की उड़ान भरकर,
छू लूंगा मैं लक्ष्य रूपी आसमान,
सफलता मेरे कदम चूमेगी,
कदमों में होगा ये सारा जहां।।

*परमानंद निषाद*

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