हिन्दी कविता: क्या फर्क पड़ता है?-Manibhai Navratna
क्या फर्क पड़ता है

आज त्यौहार है।
त्यौहार जो भी हो,
क्या फर्क पड़ता है?
इस त्यौहार में,
भेड़ ने मालिक को आवाज दी।
चिल्लाता रहा- “भें , भें!! “
मालिक पास आया,
दाना की जगह
कुछ और था हाथ में,
दूसरे ही पल में,
भेड़ चिल्लाने की कोशिश में,
अपना धड़ हिलाता रहा,
पर निकलता क्यों नहीं-
“भें, भें? “
चिल्लाने के लिए चाहिए था सर।
जो जमीन पर पड़ा था,
कुछ दूर में,
अपना मुँह फाड़े,
अपने मालिक को निहारते।
पर क्या फर्क पड़ता है?
-Manibhai Navratna