हम अर्चना करेंगे


हे जन्म-भूमि भारत, हे कर्मभूमि भारत,
हे वन्दनीय भारत, अभिनन्दनीय भारत,
जीवन सुमन चढ़ाकर, आराधना करेंगे,
तेरी जनम-जनम भर, हम वन्दना करेंगे। हम अर्चना करेंगे….


महिमा महान् तू है, गौरव निधान तू है,
तू प्राण है, हमारी जननी समान तू है,
तेरे लिए जिएँगे, तेरे लिए मरेंगे,
तेरे लिए जनम भर, हम साधना करेंगे। हम अर्चना करेंगे…

जिसका मुकुट हिमालय, जग जगमगा रहा है,
सागर जिसे रतन की, अंजलि चढ़ा रहा है,
यह देश है हमारा, ललकार कर कहेंगे,
इस देश के बिना हम, जीवित नहीं रहेंगे। हम अर्चना करेंगे..


जो संस्कृति अभी तक, दुर्जेय-सी बनी है,
जिसके विशाल मन्दिर, आदर्श के धनी है,
उसकी विजय-ध्वजा ले, हम विश्व में चलेंगे,
संस्कृति सुरभि पवन बन, हर कुंज में बहेंगे। हम अर्चना करेंगे..


शाश्वत स्वतन्त्रता का जो दीप जल रहा है,
आलोक का पथिक जो अविराम चल रहा है,
विश्वास है कि पलभर, रुकने उसे न देंगे,
उस ज्योति की शिखा को, ज्योतित सदा रखेंगे। हम अर्चना करेंगे…

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