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हिन्दूस्तां वतन है

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हिन्दूस्तां वतन है

हिन्दूस्तां वतन है, अपना जहां यही है।
यह आशियाना अपना, जन्नत से कम नहीं है।
उत्तर में खड़ा हिमालय, रक्षा
में रहता तत्पर।


चरणों को धो रहा है, दक्षिण
बसा सुधाकर।
मलयागिरि की शीतल, समीर बह रही है।
हिन्दू स्तां…।यह….।

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फल -फूल से लदे, तरुओं की शोभा न्यारी,
महकी  हुई है ,प्यारी केसर की खिलती क्यारी।
कलरव पखेरुओं का, तितली उछल रही है।
हिन्दू स्तां….।यह…।


अनमोल खजानों से ,वसुधा
भरी है सारी।
खेतों मे  बिखरा सोना, होती
है फसलें सारी।
ये लहलहाती फसलें, खुशियाँ लुटा रही है।
हिन्दू स्तां …।यह…।

मिट्टी में इसकी हम सब, पलकर बड़े हुये हैं।
आने न आँच देंगे, ऐसा ही प्रण लिये हैं।
मिट जायें हम वतन पर,
तमन्ना यह रही है।
हिन्दू स्तां वतन है, अपना जहां यही है।
यह आशियाना अपना,
जन्नत से कम नहीं है।


पुष्पा शर्मा ” कुसुम’

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