रावण दहन पर कविता
रावण दहन पर कविता

हम रावण को आज जलाने चले हैं।
उस के मौत का जश्न मनाने चले हैं।।
एक रावण अंदर मेरे भी पल है रहा,
और खुद को श्री राम बताने चले हैं।।
करते हरण हम रोज एक सीता को,
और घर में राम मंदिर बनाने चले हैं।।
निर्बल,असहाय पर जो करते है प्रहार,
परिचय वीरता का वे दिखाने चले हैं।।
करते ढोंग बाबा के वेश में रात दिन,
वो अब राम रहीम कहलाने चले हैं।।
राम का नाम बदनाम कर रखे हमने,
और खुद को राम भक्त बताने चले हैं।।
राजपाठ का लालच कूट कूटकर भरा,
और हम आज रामराज बनाने चले हैं।।
©धनेश्वर पटेल
रायगढ़ (छ. ग)
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद