हमारे देश में आना (विश्व पर्यटन दिवस पर कविता )

इंद्रधनुष

हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
मिलेंगे रंग कई देखना शहर—ओ—गांव

हमारा देश है हमारे ही मन का आंगन
इस धरा के चरण को चूमता है नीलगगन
न जाने कैसी है इस देश की माटी से लगन
जो यहां आता है हो जाता है सब देख मगन

घूम के देखो तुम भी देश मेरा पांव—पांव

हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
मिलेंगे रंग कई देखना शहर—-ओ—गांव

कई मौसम यहां जीवन के गीत गाते हैं
सभी का प्रेम देख देव मुस्कुराते हैं
रिश्ता कोई भी हो श्रद्धा से सब निभाते हैं
अपने दुःख और तनाव पे जीत पाते हैं

शांति का टापू है, नहीं है ज्यादा कांव—कांव

हमारे देश में आना लगेगी धूप—छांव
मिलेंगे रंग कई देखना शहर—ओ—गांव

स्वरचित : आशीष श्रीवास्तव

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