हमसफर पर कविता
सात फेरों से बंधे रिश्ते ही
*हम सफर*नहीं होते
कई बार *हम* होते हुए भी
*सफर* तय नहीं होते
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कई बार दूर रहकर भी
दिल से दिल की डोर जुड़ जाती है
हर पल अपने पन का
अहसास दे जाती है
कोई रूह के करीब
रहकर भी दूर होता है
कोई दूर रहकर भी
धड़कनों में धड़कता है
एक संरक्षण एक अहसास
होता है हमसफर
दूर हो चाहे पास
सांसों में महकता है हमसफर
कथित हमसफर के होते हुए भी
कई सफर अकेले ही तय करने होते हैं
संस्कारों और जिम्मेदारियों के
किले फतेह करने होते है
पर हाँ, एक सुखद एहसास होता है
हमसफर का साथ
एक हल्का सा मनुहार
और एक प्यारी सी मुस्कान
खुद में बना देती है खास
समझौते की सवारी करके
हम समझा लेते हैं खुद को
की हम ही हैं वो विशेष
जिसका खुद में नहीं है कुछ शेष
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वर्षा जैन “प्रखर”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)