होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)
होली इस उत्सव को एक प्रेमी की नज़र से लिखा गया है। प्रेमी अपनी प्रेमिका को होली में साथ रहने और इस उत्सव को प्रेम का एक शुभ अवसर बता रहा है। प्रेमी ने होली इस उत्सव को अपने नज़रिए से बयान किया है।
होली – एक प्रेमी की नज़र से (आझाद अशरफ माद्रे)

शीर्षक : होली-एक प्रेमी की नज़र से
रंगों में रंग जब कभी मिलते है,
चेहरे फुलों की तरह खिलते है।
जान पहचान की ज़रूरत नही,
होली में दिल दिल से मिलते है।
होली में काश दोनों मिल जाए,
कितने अरमान दिल में पलते है।
रूठकर प्रेमी नही खेलते होली,
बाद में हाथों को अपने मलते है।
जाने अनजाने में वो मुझे रंग दे,
आज़ाद उनकी गली में चलते है।
आझाद अशरफ माद्रे