होली होनी थी हुई – बाबू लाल शर्मा
होली होनी थी हुई – बाबू लाल शर्मा

कड़वी सच्चाई कहूँ, कर लेना स्वीकार।
फाग राग ढप चंग बिन, होली है बेकार।।
होली होनी थी हुई, कहँ पहले सी बात।
त्यौहारों की रीत को,लगा बहुत आघात।।
एक पूत होने लगे, बेटी मुश्किल एक।
देवर भौजी है नहीं, कित साली की टेक।।
साली भौजाई बिना, फीके लगते रंग।
देवर ढूँढे कब मिले, बदले सारे ढंग।।
बच्चों के चाचा नहीं, किससे माँगे रंग।
चाचा भी खाए नहीं, अब पहले सी भंग।।
बुरा मानते है सभी, रंगत हँसी मजाक।
बूढ़ों की भी अब गई, पहले वाली धाक।।
पानी बिन सूनी हुई, पिचकारी की धार।
तुनक मिजाजी लोग हैं,कहाँ डोलची मार।।
मोबाइल ने कर दिया, सारा बंटाढार।
कर एकल इंसान को,भुला दिया सब प्यार।।
आभासी रिश्ते बने, शीशपटल संसार।
असली रिश्ते भूल कर, भूल रहे घरबार।।
हम तो पैर पसार कर, सोते चादर तान।
होली के अवसर लगे, घर मेरा सुनसान।।
आप बताओ आपके, कैसे होली हाल।
सच में ही खुशियाँ मिली,कैसा रहा मलाल।।
बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान