होली सम्बन्धी दोहे- हरीश
हृदय-उद्गार–होली सम्बन्धी दोहे
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दिया संस्कृति ने हमें,अति उत्तम उपहार,
इन्द्रधनुष सपने सजे,रंगों का त्यौहार।1।
नव पलाश के फूल ज्यों,सुन्दर गोरे अंग,
ढ़ोल-मंजीरा थाप पर,थिरके बाल-अनंग।2।
मलयज को ले अंक में,उड़े अबीर-गुलाल,
पन्थ नवोढ़ा देखती,हिय में शूल मलाल।3।
कसक पिया के मिलन की,सजनी अति बेहाल,
सराबोर रंग से करे,मसले गोरे गाल।4।
लुक-छिप बॉहों में भरे,धरे होंठ पर होंठ,
ऑखों की मस्ती लगे,जैसे सूखी सोंठ।5।
बरजोरी करने लगे,गॉव गली के लोग,
कली चूम कहता भ्रमर,सुखदाई यह रोग।6।
झर-झर पत्ते झर रहे,पवन बहे इठलाय,
सुधि में बंशी नेह की,अंग-अंग इतराय।7।
तरुणाई जलने लगी,देखि काम के बाण,
बिरहन को नागिन डसे,प्रियतम देंगे त्राण।8।
पत्तों के झुरमुट छिपी,कोयल आग लगाय,
है निदान क्या प्रेम का,कोई मुझे बताय।9।
ऋद्धि-सिद्धि कारक बने,ऊॅच-नीच का नाश,
अंग-अंग फड़कन लगें,पल-पल नव उल्लास।10।
हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश’,
रायबरेली-(उप्र)-229010
9125908549
9415955693