मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।
‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।
तिनसुकिया