होली के रँग हजार – सुशीला जोशी
होली के रँग हजार – सुशीला जोशी

होली के रँग हजार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।।
लाल रंग की मेरी अंगिया
मोय पुलक पुलक पुलकावे
ढाक पलाश फूल फूल कर
मो को अति उकसावे
लाई मस्ती भरी खुमार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।। पीत रंग चुनरिया मेरी
फहर खेतों में फहरावे
गेंहु सरसों के खेतों में
लहर लहर बन लहरावे
सँग लाये बसन्ती बयार
होली किस रंग खेलूँ मैं । नील रंग गगन सा विस्तृत
निरन्तर हो कर विस्तारे
चैत वासन्ती विषकन्या सी
अंग छू छू कर मस्तावे
किलके सूरज चन्द हजार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।। श्याम रंग नैन का काजल
घना हो हो कर गहरावे
सुरमई बदली ला ला करके
गर्जना करके धमकावे
मेरी फीकी पड़ी गुहार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।। धानी रंग धरा अंगडाइ
इठला इठला सरसावे
बाग बगीचे कोयल कुके
मनवा में अगन लगावे
बौराई सतरँगी बहार ।
होली किस रंग खेलूँ मैं ।। न हिन्दू न मुसलमा कोई
नही कोई सिख ईसाई
होली के रंगों में रंग कर
सब दिखते है भाई भाई
अब न पनपे कोई दरार
होली किस रंग खेलूँ मैं ।।
सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद