आयो होली को त्यौहार-अर्पित जैन
आयो होली को त्यौहार -अर्पित जैन

गली-मोहल्ला घूम घूमके, कंडा-लकड़ी लाए।
दे अग्नि होलिका में, और भस्म घरे ले जाए।।
आयो होली को त्यौहार…
पिचकारी किलकारी मारे, गाल पे लाल गुलाल।
हरो रंग तो छुटत नाही, रंग लगा दो लाल।।
आयो होली को त्यौहार…
साफ सुथरो चेहरा लेके, घूम रहो एक लाल।
चुपड़-चुपड़ के रंगन से, बना दो हरिया-लाल।।
आयो होली रो त्यौहार…
गली-मोहल्ला घूम घूम, सब मित्रन के घर जाएं।
रंग और गुलाल लगाके,घेवर-बाबर खाए।।
आयो होली को त्यौहार…
एक भगोना पानी भर, रंगन को घोल बनाएं।
निकलत है जो चौखट से, एक लोटा चेपों जाए।।
आयो होली को त्यौहार…
सबहु मित्र इकट्ठे होकर,एक तरकीब सुझाए।
चार तरफ से घेरा कर, गोलू के रंग लगाए।।
गोलू रंगारंग हो जाए।।
आयो होली को त्यौहार…
लट्ठमार की होली को है, सबसे अलग प्रसंग।
पुरुषन में पड़ जाए लाठी, नारी फेंके रंग ।।
आयो होली को त्यौहार…
गांवन में तो गोबर के, लड्डू गोल बनाए।
गोबर के लड्डू फेंकत है, और गोबर लीपो जाए।।
आयो होली को त्यौहार…
छोड़ दे सबरे बुरे कर्म, अच्छे कर्म बचे रह जाए।
भस्म हो जावे होलिका, प्रहलाद बचो रह जाए।।
आयो होली को त्यौहार…
– अर्पित जैन