इही मोर जिनगानी

इही मोर जिनगानी

सबके बनाथंव महल अटारी
मोर घर खपरा छान्ही ।
मँय मजदूर ईंटा गिलाव के
इही मोर जिनगानी ।।
जाड़ लागे न घाम लागे
कमाथंव बारो महीना ।
पानी मा भीगत रहिथंव
गर्मी मा छुटे  पसीना ।
पापी पेट खातिर कमाथंव
पीके पसिया  पानी ।
इही मोर जिनगानी ।
रोज रोज के ईंटा उठई में
हाथ मा परथे फोरा ।
जेठ बइसाख महीना मा
पाँव  ला जरे भोंभरा ।
काबर अइसन बनाय बिधाता
तँयहा मोर  जिनगानी ।
इही मोर जिनगानी ।।
दू ठी लइका  दाई ददा ला
बनी कर करके खवाथंवं।
मोर सुवारी संग मा जाथे
दिन बुड़त घर आथंव ।
आके घर में  बुता करथे
भरे बर जाथे पानी ।।
इही मोर जिनगानी ।।
एक मंजिल दू मंजिला
घर ला मँय बनाथंवं ।
किसम किसम के अँगना
दुवारी  मिही हा सिरजाथँवं ।
छिटका  कुरिया मोर हावय
जिंहा चुहत रहिथे  पानी ।
मँय मजदूर ईंटा गिलाव के
इही मोर जिनगानी ।।
इही मोर जिनगानी ।।
केवरा यदु “मीरा “
राजिम
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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