इंसान के रूप मे जानवर

इंसान के रूप मे जानवर


क्यों ,जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है
वो जानकर भी कि ये गलत है फिर भी गलती बार-बार कर रहा है
वो कुछ इस तरह से लिप्त हो रहे दरिंदगी मे मानो
दरिंदगी के लिए ही पैदा हुआ हो सो हजार बार कर रहा है.
मर चुका है इंसान उसका राक्षस को संजोए हुए हैं
अंजाम की परवाह नहीं मौत का कफ़न ओढ़े हुए हैं
वो बहन बेटी की इज्ज़त से आज खुलेआम खेल रहा है
चीख रही निर्भया कितने उसे दर्द मे धकेल रहा है


क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.
उसके कृत्य को थू-थू सारा ही संसार कर रहा है
जिस देश मे जल -पत्थर भी पूजे जाते हैं
यहां संस्कृति है ऐसी नारी भी देवी कहे जाते हैं
फिर क्यों, इंसान इतना शैतान होता जा रहा है
छेड़खानी-बालात्कारी हर दिन छपता जा रहा है
हमारे संस्कार को धूमिल वो हर बार कर रहा है
क्यों, जानवर इंसानियत को इतना शर्मसार कर रहा है.

आनंद कुमार, बिहार

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