जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra) : Jagannath Rathyatra दूसरे शब्दों में रथ महोत्सव एकमात्र दिन है जब भक्तों को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है, उन्हें देवताओं को देखने का मौका मिल सकता है। यह त्योहार समानता और एकीकरण का प्रतीक है। रथ यात्रा भारत के पुरी में जून या जुलाई के महीनों में आयोजित भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु का अवतार) से जुड़ा एक प्रमुख हिंदू त्योहार है| पुरी रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध है और हर साल एक लाख तीर्थयात्रियों को आकर्षित करती है, न केवल भारत से बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों से भी।

जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra)

जगन्नाथ रथयात्रा पर हिंदी कविता (Jagannath Rathyatra)

शुक्ल पक्ष आषाढ़ द्वितीय।
रथयात्रा त्योहार अद्वितीय।

चलो चलें रथयात्रा में।
पुरी में लोग बड़ी मात्रा में।

जगन्नाथ के मंदिर से।
भाई बहन वो सुन्दर से।

जगन्नाथ, बलभद्र हैं वो।
बहन सुभद्रा संग में जो।

मुख्य मंदिर के बाहर।
रथ खड़े हैं तीनों आकर।

कृष्ण के रथ में सोलह चक्के।
चौदह हैं बलभद्र के रथ में।
बहन के रथ में बारह चक्के॥

रथ को खींचों।
बैठो न थक के।

मौसी के घर जाएंगे।
मंदिर (गुंडिचा )हो आएंगे।

नौ दिन वहां बिताएंगे।
लौट के फिर आ जाएंगे।

बहुड़ा जात्रा नाम है इसका।
नाम सुनो अब कृष्ण के रथ का।

नंदिघोषा, कपिलध्वजा।
गरुड़ध्वजा भी कहते हैं।

लाल रंग और पीला रंग।
शोभा खूब बढ़ाते हैं।

तालध्वजा रथ सुन्दर सुन्दर।
भाई बलभद्र बैठे ऊपर।

नंगलध्वजा भी कहते हैं।
बच्चे, बूढ़े और सभी।

गीत उन्हीं के गाते हैं।
रंग-लाल, नीला और हरा।

ये त्योहार है खुशियों भरा।
देवदलन रथ आता है।

बहन सुभद्रा बैठी है।
कपड़ों के रंग काले-लाल।

दो सौ आठ किलो सोना।
तीनों पर ही सजता है।

खूब मनोहर सुन्दर झांकी।
कीमत इसकी कोई न आंकी।

दृश्य मन को भाता है।
एक झलक तो पा लूँ अब।

विचार यही बस आता है।

चलो चलें रथ यात्रा में।
पुरी में लोग बड़ी मात्रा में॥

जगन्नाथ रथयात्रा पर कविता 2

“हे प्रभु जगन्नाथ थाम मेरा हाथ,
अपने रथ में ले चल मुझे साथ।
लुभाये न मुझको अब कोई पदार्थ
मेरा तो बस अब एक ही स्वार्थ,
धर्म युद्ध हो या कर्म युद्ध हो
तू बने सारथि, मैं बनूँ पार्थ ।
मैं हूँ अन्जान बन के मेरा नाथ
अपने रथ में ले चल मुझे साथ।”

उसके हाथ में
कोई हथियार नहीं था
उसका चेहरा बड़ा भव्य था
वह खुली जीप में आया था

उसके आगे पीछे
लम्बा चौड़ा काफ़िला था वाहनों का
माथे पर पट्टियाँ बांधे
जोश में नारे लगाती
अनुयायियों की
उन्मादी भीड़ थी
उसके चारों ओर

वह रौंदता जा रहा था
मेहनतकशों की बनायी
उम्मीदों की सड़क

उसके आने से पहले ही
लोग दुबक चुके थे घरों में
किसी अनिष्ट की आशंका से
बंद हो गए थे बाज़ार
फैला हुआ था सन्नाटा चारों ओर
कोई नहीं देख रहा था
उसकी सवारी
अनुयायियों की उन्मादी भीड़ के सिवा

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जब तीनों रथ बनकर तैयार हो जाते हैं तब इन तीनों रथों की विधिवत पूजा की जाती है. इतना ही नहीं जिस रास्ते से यह रथ निकलने वाले होते हैं उसे ‘सोने की झाड़ू’ से साफ़ भी किया जाता है।

Comments

  1. Akil khan Avatar
    Akil khan

    Bahut hi sunder kavita.

  2. Akil khan Avatar
    Akil khan

    Very nice.

  3. एकता गुप्ता Avatar
    एकता गुप्ता

    बहुत ही सुन्दर सृजन 🙏🙏
    जय हो प्रभु जगन्नाथ की 🙏🙏

  4. Ekta Gupta Avatar
    Ekta Gupta

    बहुत ही सुन्दर सृजन 🙏🙏
    जय हो प्रभु जगन्नाथ की 🙏🙏

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