जाति व्यवस्था पर कविता -विनोद सिल्ला
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जाति व्यवस्था पर कविता
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मैं लोगों से
अक्सर सुनता हूँ
कि जातीय बन्धन
ढीले हो गए
लेकिन मेरे शहर में
जातियों ने
हर चौंक पर
कर लिया कब्जा
हर धर्मशाला में
कर लिया
अपना निवास
हर मौहल्ले को
दे दिया अपना नाम
जाति आधारित
संस्थाएं
संघर्षरत हैं
अपना दबदबा
कायम रखने के लिए
मुझे लगता है
जाति व्यवस्था
और हो गई जटिल
-विनोद सिल्ला