जब मैं छोटा था – मनीभाई नवरत्न

जब मैं छोटा था – मनीभाई नवरत्न
जब मैं छोटा था
जब मैं छोटा था
तब बहुत मोटा था ।
तब ना थी चिंता ना जलन ना दर्द ।
तब थी फटी हुई पेंट और नाक में सर्द ।
आज फिर उसी पल को पाने की सोचता हूं ।
गुमनाम जीवन में बचपन को खोजता हूं ।
उस पल जब गिरता जमीन में
तब उठाता कोई ।
आज जब गिरता हूं तब दुनिया रहती खोई ।
उस पल ऊटपटांग बातें
दिल में घर कर जाती थी ।
आज सच्ची कड़वी बातें
नया संकट को लाती हैं
तब नोट थे कागज के चिट्ठे ।
जो लाती थी बेरकुट व नड्डे ।
आज बन गए वे जिंदगी और जुनून ।
जिसे पाने को लोग कर जाएं बंदगी और खून।
बड़ा घिनौना ये जवानी की मारामारी ।
बचपन में ही छुपी जीवन की खुशियां सारी ।
तभी तो कहूं –
“समाज को बाल अपराध से बचाएं ।
बाल शिक्षा से उनको काबिल बनाए ।
तब भ्रष्टाचार ना टिक पायेगी ।
खुली बाजार में उसकी इज्जत लूट जाएगी।”