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जिन्दगी पर कविता – पुष्पा शर्मा

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जिन्दगी का मकसद

जिन्दगी
kavita bahar

रोज सोचती हूँ।
जिन्दगी का मकसद
ताकती ही रहती हूँ
मंजिल की लम्बी राह।

सोचती ही रहती हूँ
प्रकृति की गतिविधियाँ,
जो चलती रहती अविराम।
सूरज का उदय अस्त
रजनी दिवस का निर्माण।

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रात का अंधियारा करता दूर
चाँद की चाँदनी का नूर।
तारों की झिल मिल रहती
अँधेरी रातों का भय हरती।

शीतल समीर संग होता सवेरा,
परीन्दों के कलरव ने सृष्टि को घेरा।
सुमन की सुरभियों का भार
तरु शाखाओं का आभार।
सभी की गति चलती अविराम।
नहीं लेती थकने का नाम।

फिर मनुज का जीवन कितना?
बहुत है कार्य, कर सके जितना।
परहित  जीवन लगे तमाम
आखिर है अनन्त विश्राम।

पुष्पा शर्मा“कुसुम”

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