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जिंदगी एक पतंग – आशीष कुमार

उड़ती पतंग जैसी थी जिंदगी
सबके जलन की शिकार हो गई
जैसे ही बना मैं कटी पतंग
मुझे लूटने के लिए मार हो गई

सबकी इच्छा पूरी की मैंने
मेरी इच्छा बेकार हो गई
कहने को तो आसमान की ऊँचाईयाँ मापी मैंने
चलो मेरी ना सही सबकी इच्छा साकार हो गई

ऐसा भी ना था कि पाँव जमीन पर ना थे मेरे
किसी ना किसी से मेरी डोर अंगीकार हो गई
मगर जमाने भर की बुरी नजर थी मुझ पर
मुझे काटने के लिए हर पतंग तैयार हो गई

पंख लगाकर उड़ना था मुझे
मेरी यह इच्छा स्वीकार हो गई
जब तक साँस चली उड़ाया गया
फिर यह जिंदगी मिट्टी में मिलने के लिए लाचार हो गई

सबको खुशियाँ देता रहा मैं
मेरी खुशियाँ सब पर उधार हो गई
हर रंग देखा पल भर की जिंदगी में
जाते-जाते सबकी यादें बेशुमार हो गई

                        – आशीष कुमार
                         मोहनिया बिहार

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