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जिंदगी पर कविता -सरोज कंवर शेखावत

जिन्दगी
जिंदगी- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

जिंदगी ने जिंदगी से ऐसा भी क्या कह दिया,
लब तो खामोश थे फिर क्या उसने सुन लिया।

वक़्त की बेइमानियां सह ग‌ए हम  चुप खड़े,
तूने जब मूंह मोड़ा हमसे हमने जहर है पिया।

इस जहां की बंदिशों में हमने जीना सीखा है,
दिल फंसा तेरे इश्क में बिन तेरे न लागे जिया।

गुमशुदा सी राह में तुम मिले हमें इस कदर,
प्यार का अहसास हुआ शुक्रिया तेरा शुक्रिया।

इश्क की तालीम देकर यूं हुए तुम बेखबर,
जान ले लेगी जुदाई यूं ना बन तूं अश्किया।

आ भी जा अब लौट आ पुकारती निगाह है,
छटपटाती रूह को बाहों में ले परदेशिया।

जिंदगी ने जिंदगी से ऐसा भी क्या कह दिया,
लब तो खामोश थे फिर क्या उसने सुन लिया।
         -सरोज कंवर शेखावत


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