जिन्दगी शम्मा सी – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
इस रचना में खुदा की इबादत को ग़ज़ल के माध्यम से प्रेषित किया गया है |
जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे – ग़ज़ल – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
जिन्दगी शम्मा सी – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे
जिन्दगी तेरी इबादत की जुस्तजू हो खुदाया मेरे
शम्मा सी रोशन जिन्दगी सबकी हो खुदाया मेरे
मुश्किलों से निजात जिन्दगी सबकी हो खुदाया मेरे
पाक – साफ़ हों दिल से सभी खुदाया मेरे
चारों पहर जुबां पर नाम हो तेरा खुदाया मेरे
एक तेरे नाम से रोशन हों ये दोनों जहां खुदाया मेरे
तेरे एहसास से खुशगंवार हों ये दोनों जहां खुदाया मेरे
जहां से भी मैं गुजरूँ तेरा एहसास हो खुदाया मेरे
गुंचा – गुंचा तेरे एहसास से रूबरू हो खुदाया मेरे
नादानी जो हो जाये माफ़ करना खुदाया मेरे
मैं साँसें ले रहा हूँ तो एक तेरे दम से खुदाया मेरे
नसीब मेरा बने तेरे करम से खुदाया मेरे
आशियाँ मेरा रोशन हो तेरे करम से खुदाया मेरे
दो फूल मेरी भी झोली में डाल दे खुदाया मेरे
शम्मा सी रोशन हो जिन्दगी हमारी खुदाया मेरे
निराली है तेरी शान , तेरा करम हम पर हो खुदाया मेरे
पाक – साफ़ दामन हो मेरा , मेरा चिराग तुझसे रोशन हो खुदाया मेरे
जिन्दगी शम्मा सी रोशन हो खुदाया मेरे
जिन्दगी तेरी इबादत की जुस्तजू हो खुदाया मेरे