कृषक मेरा भगवान
कृषक मेरा भगवान(मनीभाई’नवरत्न’)
मैंने अब तक
जब से भगवान के बारे में सुना ।
न उसे देखा,न जाना ,
लेकिन क्यों मुझे लगता है
कि कहीं वो किसान तो नहीं।।
उस ईश्वर के पसीने से
बीज बने पौधे,
पोषित हुये लाखों जीव।
फसल पकने तक
चींटी,चूहे,पतंगों का
वही एकमात्र शिव।।
किसान तो दाता है
इसीलिए वो विधाता है।
पर वो आज अभागा है।
कुछ नीतियों से ,
कुछ रीतियों से
और कुछ अपने प्रवृत्तियों से।।
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वह सब सहता है
इस हेतु कुछ ना कहता है।
गांठ बना लिया है मन में
त्यागी होने की।
आंखों में पट्टी बांध लिया है
जिससे लुट रहे हैं उसे
साधु के भेष में अकर्मण्य लोग।।
संसार का सारा सौदा
किसानों पर है निर्भर।
सब लाभ में है
केवल किसान को छोड़कर।
कठिन लगता है उसे
अपने अधिकारों से लड़ना।
आसान लगता है उसे
दो घड़ी मौत से छटपटाना।।
सारा दृश्य देख,जान
मैं नहीं इस बात से अनजान।
इस जग में
पत्थर सा नहीं खुशनसीब
कृषक मेरा भगवान।
✒️ मनीभाई’नवरत्न’
रचनाकाल:-२६दिस.१८,२:५०