कभी इन्सां है क्या समझा नहीं था
कभी इन्सां है क्या समझा नहीं था
कभी इन्सां है क्या समझा नहीं था
ख़ुदा को इसलिए पाया नहीं था
हमारा प्यार रूहों का मिलन था
फ़क़त जिस्मों तलक़ फैला नहीं था
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बिताई उम्र सारी मुफ़लिसी में
मगर ईमां कभी बेचा नहीं था
अता की बज़्म को जिसने बुलन्दी
उसी का बज़्म में चर्चा नहीं था
परखने पर निराशा हाथ आती
ज़रूरत पर तभी परखा नहीं था
Bahut achha likha hai Aapne Benaam Sahab.?❤️.Imaan kabhi becha nahi tha..bahut khoobsurat..????