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कीमत चुकानी पड़ेगी -विनोद सिल्ला

बढ़ती अराजकता पर लिखी गई छोटी कविता

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कीमत चुकानी पड़ेगी

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बोलोगे तो
कीमत चुकानी पड़ेगी
चुप रहोगे तो कीमत
आने वाली
पीढ़ियों को भी
चुकानी पड़ेगी।
बोलिए
आवाज बुलंद कीजिए।
अभी चुका दीजिए
कीमत।
उधार ठीक नहीं
वरना
छिकु-छिकु छियानवे होंगे।
दो ब्याज के
दो लिहाज के
पूरे सौ
हो जाएं।

-विनोद सिल्ला©

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