अपनी जिंदगी की शानदार होली
क्या आपने इस बार अपनी जिंदगी की शानदार होली खेली है? होली को रंगों का त्योहार माना जाता है इस दिन एक दूसरे को गुलाल लगाया जाता है और होलिका दहन कर होली उत्सव मनाते आ रहे हैं।
सामाजिक प्रथा के नाम पर कई जगह इस दिन गंदी भाषाओं का प्रयोग भी होता है पर यहां पर लेखक ने इन सब से परे हो करके अपनी होली खेली है जिसे अपने कविता के माध्यम से उन्होंने व्यक्त किया है।
अपनी जिंदगी की शानदार होली
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ऐसा नहीं है कि
आता नहीं खेलना होली।
या फिर डर है रंगों से।
इस पावन पर्व के मायने
मुझे पता है ।
इसलिए नहीं खेली ऐसी होली।
जैसे खेली जाती रही है
हर बार हर जगह।
मन है बुराइयों के बीच
तो बुराई का प्रवेश
संभव है अपने अंदर।
जो रंगीनी की चाह में रहेगा।
वो अछूता कैसे रह पायेगा
किसी भी रंग से।
मुझे रंगना है
उससे पहले घिस जाना चाहता हूं
किसी रेगमाल से।
मैं नहीं चाहता कि
जो रंग मुझपे चढ़े वो उतर जाये
आसानी से पपड़ी बनके।
इसीलिए निखरने की पहली शर्त में
जलना चाहता हूं।
होलिका दहन भी यही बताती है
पर मेरे होली में
ना लकड़ी से आग जली ।
ना गुलाल को पानी से घोली।
ना किसी को गंदी जुबान बोली।
हां मैंने ऐसी खेली
अपनी जिंदगी की शानदार होली।
मनीभाई पटेल नवरत्न