कविता प्रकाशित कराएँ

अप्सरा पर कविता

बादलो ने ली अंगड़ाई,
खिलखलाई यह धरा भी!
हर्षित हुए भू देव सारे,
कसमसाई अप्सरा भी!

कृषक खेत हल जोत सुधारे,
बैल संग हल से यारी !
गर्म जेठ का महिना तपता,
विकल जीव जीवन भारी!
सरवर नदियाँ बाँध रिक्त जल,
बचा न अब नीर जरा भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!

घन श्याम वर्णी हो रहा नभ,
चहकने खग भी लगे हैं!
झूमती पुरवाई आ गई,
स्वेद कण तन से भगे हैं!
झकझोर झूमे पेड़ द्रुमदल,
चहचहाई है बया भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!

जल नेह झर झर बादलों का,
बूँद बन कर के टपकता!
वह आ गया चातक पपीहा,
स्वाति जल को है लपकता!
जल नेह से तर भीग चुनरी,
रंग आएगा हरा भी!
बादलों ने ली अंगड़ाई,
खिलखिलाई यह धरा भी!

✍©
बाबू लाल शर्मा,बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान


Posted

in

by

Comments

  1. anil kaser Avatar
    anil kaser

    सुन्दर गीत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *