क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से

क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से

झलकत, नैनन की गगरियाँ,
झलक उठे, अश्रु – धार,
क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से,
बेहिन्तहा, होकर बेकरार!

तड़पत – तड़पत हुई मै बावरी,
ज्यों तड़पत जल बिन मछली,
कब दर्शन दोगे घनश्याम,
बिन तेरे अँखियाँ अकुलांई!

क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से, बेहिन्तहा, होकर बेकरार,!

मुझे अपनी बाँसुरियाँ बना लौ,
वर्ना, प्रीत मोहे डस लेगी,
दरसन मै, तेरे, बाँसुरियाँ के छिद्रों से अपलक, निर्विघ्न, नम अँखियों से, कर लूँगी,
प्यासी मोरी अँखियाँ, रोम – रोम निहारेंगी,
फिर जी उठेगा, मोरा संसार, बेमिसाल,!

क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से, बेहिन्तहा, होकर बेकरार!

पाकर दरसन मै तेरा, मोरी काया कंचन हो जायेगी,
पाकर दरसन मै तेरा, मन रत्न – जड़ित हो जायेगा,
छूकर मोर – पँख मै तेरा, मोरनी सी नृत्य करुँगी,,
छूकर, पीताम्बर मै तेरा, जोगन रूप धरूँगी,!

क्यों? प्रीत बढ़ाई कान्हा से, बेहिन्तहा, होकर, बेकरार!

ज्ञान भंडारी

Leave A Reply

Your email address will not be published.