लड़कीयों की दशा पर कविता

लड़कीयों की दशा पर कविता

एक लड़की को
देखा हूँ
तीन वर्ष की थी वह
माँ की स्तन की दूध
कुछ दिन पहले ही छोड़ी थी
नाक बह रही थी उसकी
चौबीसों घंटे की
दिन में
वह बहुत सारी
रूप धारण करती थी
वह खाना पकाई
टूटे माटी की हांड़ी में
पत्थर की चूल्हे पर
लकड़ी की जलावन से
सब्जी भाजी बनाई
लहसुन की छौंक भी लगाई
बहुत स्वादिष्ट
मुँह में पानी आ जायेगा .

फिर “माँ ” बनकर
गुड़िया रूपी बच्ची को सुलाई
गोद में खिला -खिलाकर
हाटिया को गई
हाथ में झोला लेकर
सब्जी,नमक और तेल खरीदने
अपनी गुड़िया के लिए
लड्डू और मिठाई भी .

फिर कभी वह
मास्टरनी बनती है
हाथ में पोथी लेकर
आपने बच्ची को पढ़ाती है
जोर-जोर से
फिर कभी वह
यह सबकुछ छोड़कर
अपनी असली रूप में आ जाती है
“माँ” से बच्ची बनती है
अपनी माँ की गोद में जाती है .

यह सब देखकर याद आया
ईश्वर इस बच्ची को
कितना सुन्दर बनाई है
तीन साल की उम्र में ही
सभी कुछ जान गई है
लड़की बनकर जीवन बिताना
बहन,प्रेमिका ,पत्नी और बहु
बनने तक ही नहीं
मास्टरनी बनकर काम करने को
बहुत सारा काम है .

चंद्रमोहन किस्कू

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