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लोक गीत -उपमेंद्र सक्सेना

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लोक गीत – उपमेंद्र सक्सेना

जाकी लाठी भैंस बाइकी, बाकौ कौन नाय अबु जनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

ब्याहु पड़ौसी को होबन कौ, बाके घरि आए गौंतरिया
पपुआ ने तौ उनमैं देखी, गौंतर खाउत एक बहुरिया
बाके पीछे बौ दीबानो, औरन कौ बौ नाहीं गिनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

जाने केते बइयर डोलैं, फाँसैं केती बइयरबानी
खेलैं चाल हियन पै अइसी, करै न कोऊ आनाकानी
अपुनी मस्ती मैं जो झूमै, बातु नाय काहू की सुनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

आजु दबंग माल हड़पत हैं, आउत है जेतो सरकारी
केते तड़पैं लाचारी से, उनै नाय देखैं अधिकारी
भूलि गओ औकात हियन जो, बातु- बातु पै लाठी तनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ, दइयर तौ भौजाई मनि है।

काबिल अबु घूमत सड़कन पै, ऐरे- गैरे मौजु मनाबैं
सरकारी ठेका लइके बे, हैं उपाधियन कौ बँटबाबैं
मूरख हियन दिखाबैं तुर्रा, आपसु मैं फिरि उनकी ठनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

अपुनी जुरुआ से लड़िबै जो, औरु मेहरुहन जौरे जाबै
बाको सबु पइसा लुटि जाबै, अपुनी करनी को फल पाबै
फुक्कन कौ तौ सबु गरियाबैं, कोऊ उनको काम न बनि है
कमजोरन की लुगाइनन कौ,दइयर तौ भौजाई मनि है।

रचनाकार -✍️उपमेंद्र सक्सेना
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उत्तर प्रदेश)

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