माँ पर कविता
माँ पर कविता
उत्सव फाग बसंत तभी
जब मात महोत्सव संग मने।
जीवन प्राण बना अपना,
तन माँ अहसान महान बने।
दूध पिये जननी स्तन का,
तन शीश उसी मन आज तने।
धन्य कहें मनुजात सभी,
जन मातु सुधीर सुवीर जने।
भाव सुनो यह शब्द महा,
जनमे सब ईश सुसंत जहाँ।
पेट पले सब गोद रहे,
अँचरा लगि दूध पिलाय यहाँ।
मात दुलार सनेह हमें,
वसुधा मिल मात मिसाल कहाँ।
मानस आज प्रणाम करें,
धरती बस ईश्वर मात जहाँ।
पूत सुता ममता समता,
करती सम प्रेम दुलार भले।
संतति के हित जीवटता,
क्षमता तन त्याग गुमान पले।
आँचल काजल प्यार भरा,
शिशु देय पिशाच बलाय टले।
आज करे पद वंदन माँ,
पद पंथ निशान पखार चले।
पूत सपूत कपूत बने,
जग मात कुमात कभी न रहे।
आतप शीत अभाव घने,
तन जीवन भार अपार सहे।
संत समान रही तपसी,
निज चाह विषाद कभी न कहे।
जीवन अर्पण मात करे,
तब क्यों अरमान तमाम बहे।
✍©
बाबू लाल शर्मा, “बौहरा”
सिकंदरा, 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479