भू से भारी वात्सल्य तेरा, जिसका कोई तोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
हो आँखों से ओझल लाल यदि, पड़े नहीं कल अंतर में।
डोले आशंकाओं में चित, नौका जैसे तेज भँवर में।
लाल की खातिर कुछ भी सहने मे, तेरे मन में गोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
खुद गीले में सो कर भी, सूखे में तू उसे सुलाए।
देख उपेक्षा चुप से रो लेती, ना सपने में भी उसे रुलाए।
सुनती लाख उलाहने उसके, फिर भी मन में झोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
लाल की खातिर सारे जग से, निशंकोच वैर तू ले लेती।
दो पल का सुख उसे देने में, अपना सर्वस्व लुटा देती।
तेरे रहते लाल के माथे, बल पड़ जाए ऐसी पोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
रूठे तेरा लाल कभी तो, मुँह में कलेजा आ जाता।
एक आह उसकी सुन कर, तम आँखों आगे छा जाता।
गिर पड़े कहीं वो पाँव फिसल, तो तेरे मुख में बोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
तेरा लाल हँसें तो हे माता, तेरा सारा जग हँसता।
रोए लाल तो तुझको माता, सारा जग रोता दिखता।
‘नमन’ तेरे वात्सल्य को हे माँ, इससे कुछ अनमोल नहीं।
माँ तेरी ममता का कोई मोल नहीं॥
तिनसुकिया
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