माँ को समर्पित रचना
ज़ख्म भर जाता नया हो, या पुराना गोद में,
हाँ खुशी से पालती है, माँ ज़माना गोद में।
वो दुलारे वो सँवारे, वो निहारे प्यार से,
लोरियाँ भी हैं ऋचाएँ, गुनगुनाना गोद में।
चाँद तारे खेलते हैं, सूर्य अठखेली करे,
आसमां भी ढूँढता है, आशियाना गोद में।
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मैं सुखी था मैं सुखी हूँ, और होगा कल सुखद,
मिल गया आनंद का है, अब खज़ाना गोद में।
क्यों कहूँ मैं स्वर्ग जैसा, मात का आँचल लगे,
देवता भी चाहते हैं, जब ठिकाना गोद में।
ढाल बनती है सदा तू, संकटों से जब घिरूँ,
आसरा है एक तेरा, माँ सुलाना गोद में।
गीता द्विवेदी